DID YOU KNOW ?
मैंने कतई ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे ईमानदार माना जाऊं न जाने उन्हें कैसे यह भ्रम हो गया कि मैं ईमानदार हूँ। मुझे पत्र मिला, "हम लोग इस शहर में एक ईमानदार सम्मेलन कर रहे हैं। आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार है। हमारी प्रार्थना है कि आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें। हम आपको आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे तथा आवास, भोजन आदि की उत्तम व्यवस्था करेंगे। आपके आगमन से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को बड़ी प्रेरणा मिलेगी।" में गया। लेकिन हलफिया कहता है कि ईमानदारी के लिए, नहीं गया। ईमान से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। मैं यह हिसाब लगाकर गया कि दूसरे दर्जे में जाऊंगा और पहले का किराया लूंगा। इस तरह एक सौ पचास. रुपये बचेंगे। यह बेईमानी कहलायेगी। पर उन लोगों ने मुझे राष्ट्रीय स्तर का ईमानदार माना ही क्यों है।
स्टेशन पर मेरा खूब स्वागत हुआ। लगभग दस बड़ी फूल-मालाएं पहनायी गयीं। सोचा, आस-पास कोई माली होता तो फूल-मालाएं भी बेच लेता। मुझे होटल के एक बड़े कमरे में ठहराया गया। मेरे कमरे के बायें और सामने दो हाल थे, जिनमें लगभग तीस-पैंतीस प्रतिनिधि उहरे थे। मेरे दो ईमानदार साथी भी मेरे ही कमरे में आ गये। मैंने सोचा ताला लगाया जायेगा. तो इन्हें तकलीफ होगी। मैंने ताला नहीं लगाया। उद्घाटन शानदार हुआ। मैंने लगभग एक घंटे तक भाषण दिया।
लोग जा चुके थे। मैं था मुख्य अतिथि मुझसे लोग बातें कर रहे थे। मैं चलने लगा, तो चप्पल पहनने गया देखा, मेरी चप्पलें गायब थीं। नयी और अच्छी चप्पले थीं। अब वहाँ एक जोड़ी फटी पुरानी चप्पलें बची थीं। मैंने उन्हें ही पहन लिया। यह बात फैल गयी कि मेरी नयी चप्पलें कोई पहन गया।
एक ईमानदार डेलीगेट मेरे कमरे में आये। कहने लगे, "क्या आपकी चप्पलें कोई पहन गया मैंने कहा, “हा, इतने बड़े अलसे में चप्पलों की अदला-बदली हो ही जाती है।" फिर मैंने ध्यान से देखा, उनके पांवों में मेरी ही चप्पलें थीं। वह भी मेरी चप्पलें देख रहे थे। वे बहुत करके उनकी ही थीं। पर वह बेहिचक मुझे समझाने लगे, "देखिए, चप्पलें एक जगह नहीं उतारनी चाहिए। एक चप्पल यहाँ उतारिये, तो दूसरी दस फीट दूर तब चप्पले चोरी नहीं होती। एक ही जगह जोड़ी होगी, तो कोई भी पहन लेगा। मैने ऐसा ही किया था।"
में देख रहा था कि वह मेरी ही चप्पलें पहने हैं और मुझे समझा मैंने कहा, "कोई बात नहीं सुबह दूसरी खरीद लूंगा। आपकी चप्पले नहीं गयीं, यह गनीमत है।" फिर मैंने देखा कि एक बिस्तर की चादर गायब है। मैंने आयोजनकर्ताओं से कहा, तो उन्होंने जवाब दिया, "होटलवाले ने धुलाने को भेज दी होगी। दूसरी आ जायेगी।" पर दूसरी आयी नहीं। दूसरे दिन गोष्ठियां शुरू हो गयी। रात को गोष्ठियों से लौटा। देखा कि दो और चादरें गायब हैं। तीनों चली गयी। दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा खोजने लगा तो नहीं मिला, शाम को तो था। मैंने एक-दो लोगों से कहा, तो बात फैल गयी। इसी समय बगल के कमरे में हल्ला हुआ, "अरे मेरा ब्रीफकेस कहाँ चला गया? यहीं तो रखा था। " मैंने पूछा, "उसमें पैसे तो नहीं थे ?" जबाब मिला, "पैसे तो नहीं थे। कागजात थे।" मैंने कहा, "तो मिल जायेगा।" में बिना धूप का चश्मा लगाये बैठक में पहुंचा। बैठक में पंद्रह मिनट चाय की छुट्टी हुई। लोगों ने सहानुभूति प्रकट की। एक सज्जन आये। कहने लगे, "बड़ी चोरियां हो रही है। देखिए आपका धूप का चश्मा ही चला गया।"
वह धूप का चश्मा लगाये थे। मुझे याद था, एक दिन पहले वह धूप का चश्मा नहीं लगाये थे। मैंने देखा, जो चश्मा वह लगाये थे, वह मेरा ही था। कहने लगे, "आपने चश्मा लगाया नहीं था ?"
मैंने कहा, "रात को क्या चांदनी में धूप का चश्मा लगाया जाता है? मैंने कमरे की टेबल पर रख दिया था।" वह बोले, "कोई उठा से गया होगा।" में उन्हें देख रहा था और वह मेरा चश्मा लगाये इतमीनान से बैठे थे। तीसरे दिन रात को लौटा तो कुछ हसरत थी थोड़ी ठण्ड भी थी। मैंने सोचा, बिस्तर से कम्बल निकाल लू। पर कम्बल भी गायब था। फिर हल्ला हुआ। स्वागत समिति के मंत्री आये। कई कार्यकर्ता आये। मंत्री कार्यकर्ताओं को डांटने लगे, "तुम लोग क्या करते हो ? तुम्हारी ड्यूटी यहाँ है। तुम्हारे रहते चोरियां हो रही हैं। यह ईमानदार सम्मेलन है। बाहर यह बोरी की बात फैली, तो कितनी बदनामी होगी " कार्यकर्ताओं ने कहा, "हम क्या करें ? अगर सम्माननीय डेलीगेट यहाँ वहाँ जायें, तो क्या हम उन्हें रोक सकते हैं ?
" मंत्री ने गुस्से से कहा, "मैं पुलिस को बुलाकर यहाँ सबकी तलाशी " करवाता हूँ।' मैंने समझाया, "ऐसा हरगिज़ मत करिये। ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी लें, यह बड़ी अशोभनीय बात होगी। फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी गड़बड़ी होगी ही।" एक कार्यकर्ता ने कहा, "तलाशी किनकी करवायेंगे, आधे के लगभग डेलीगेट तो किराया लेकर दोपहर को ही वापस चले गये।" रात को पहनने के कपड़े सिरहाने दबाकर सोया नयी चप्पलें और शेविंग का डिब्बा बिस्तर के नीचे दबाया। सुबह मुझे लौटना था। मुझे उन लोगों ने अच्छा पैसा दिया। मैंने सामान बांधा। मंत्री ने कहा, "परसाई जी गाड़ी आने में देर है। चलिये, स्वागत समिति के साथ अच्छे होटल में भोजन हो जाये। अब ताला लगा देते हैं।" पर ताला भी गायब था। ताला तक चुरा लिया गजब हो गया। मैंने कहा, "रिक्शा बलवाइये। मैं सीधा स्टेशन जाऊँगा। यहाँ नहीं रुकूंगा।"
मंत्री हैरान थे। बोले, "ऐसी भी क्या नाराज़गी है ?" मैंने कहा, "नाराजगी कतई नहीं है। बात यह है कि चीजें तो सब चुरा ली गयी। ताला तक चोरी में चला गया। अब मैं बचा हूँ। अगर रुका तो मैं ही चुरा लिया जाऊंगा।"
Comments
Post a Comment